Jitendra Kumar Yadav (9971561280,9871730720)

Tuesday, July 12, 2011

मैथिली लेल एकटा अनुवाद सिद्धान्त

मैथिली लेल एकटा अनुवाद सिद्धान्त: अनुवादक इतिहास बड्ड पुरान छै। कोनो प्राचीन भाषा जेना संस्कृत, अवेस्ता, ग्रीक आ लैटिनक कोनो कालजयी कृति जखन दुरूह हेबऽ लागल तँ ओइपर चाहे तँ भाष्य लिखबाक खगताक अनुभव भेल आ कनेक आर आगाँ ओकरा दोसर भाषामे अनुवाद कऽ बुझबाक खगताक अनुभव भेल। प्राचीन मौर्य साम्राज्यक सम्राट अशोकक पाथरपर कीलित शिलालेख सभ, कएकटा लिपि आ भाषामे, राज्यक आदेशकेँ विभिन्न प्रान्तमे प्रसारित केलक। भाष्य पहिने मूल भाषामे लिखल जाइत छल आ बादमे दोसर भाषामे लिखल जाए लागल।
 
मैथिलीसँ दोसर भाषा आ दोसर भाषासँ मैथिलीमे अनुवाद लेल सिद्धान्त: मैथिलीसँ सोझे दोसर भाषामे अनुवाद अखन धरि संस्कृत, बांग्ला, नेपाली, हिन्दी आ अंग्रेजी धरि सीमित अछि। तहिना ऐ पाँचू भाषाक सोझ अनुवाद मैथिलीमे होइत अछि। ऐ पाँच भाषाक अतिरिक्त मराठी, मलयालम आदि भाषासँ सेहो सोझ मैथिली अनुवाद भेल अछि मुदा से नगण्य अछि। मैथिलीमे अनुवाद आ मैथिलीसँ अन्य भाषामे अनुवाद ऐ पाँचू भाषाकेँ मध्यस्थ भाषाक रूपमे लऽ कऽ होइत अछि।  अहू पाँच भाषामे हिन्दी, नेपाली आ अंग्रेजीक अतिरिक्त आन दू भाषाक मध्यस्थ भाषाक रूपमे प्रयोग सीमित अछि। अनुवादसँ कने भिन्न अछि रूपान्तरण, जेना कथाक नाट्य रूपान्तरण वा गद्यक पद्यमे पद्यक गद्यमे रूपान्तरण। ऐ मे मैथिलीसँ मैथिलीमे विधाक रूपान्तरण होइत अछि आ अनुवाद सिद्धान्तक ज्ञान नै रहने रूपान्तरकार अर्थ आ भावक अनर्थ कऽ दैत अछि। मैथिलीमे आ मैथिलीसँ अनुवादमे तँ ई समस्या आर विकट अछि।
उत्तम अनुवाद लेल किछु आवश्यक तत्त्व: शब्दशः अनुवाद करबा काल ध्यान राखू जे कहबी आ सन्दर्भक मूल भाव आबि रहल अछि आकि नै। श्ब्द, वाक्य आ भाषाक गढ़नि अक्षुण्ण रहए से ध्यानमे राखू। मूल भाषाक शब्द सभ जँ प्राचीन अछि तँ अनूदित भाषाक शब्द सभकेँ सेहो पुरान आ खाँटी राखू। मूल आ अनूदित भाषाक व्याकरण आ शब्द भण्डारक वृहत् ज्ञान एतए आवश्यक भऽ जाइत अछि। मूल भाषामे मुँह कोचिया कऽ बाजल रामनाथ, उमेशक प्रति सम्बोधनकेँ रामनाथो, उमेशोक बदलामे रामनाथहुँ, उमेशहुँ कऽ अनुवाद कएल जाएब उचित हएत मुदा सामान्य परिस्थितिमे से उचित नै हएत। से शब्द, भाव, प्रारूपमे सेहो आ मूल कृतिक देश-कालक भाषामे सेहो समानता चाही। अनुवादककेँ मूल आ अनूदित कएल जाएबला भाषाक ज्ञान तँ हेबाके चाही संगमे दुनू भाषा क्षेत्र इतिहास, भूगोल, लोककथा, कहबी आ ग्रम्य-वन्य आ नग्रक संस्कृतिक ज्ञान सेहो हेबाक चाही। ई मध्यस्थ भाषासँ अनुवाद करबा काल आर बेसी महत्वपूर्ण भऽ जाइत अछि। ऐ परिस्थितिमे दुनू भाषा क्षेत्रक इतिहास, भूगोल, लोककथा, कहबी आ ग्रम्य-वन्य आ नग्रक संस्कृतिक ज्ञान सँ तात्पर्य अनूदित आ मूल भाषा क्षेत्रसँ हएत मध्यस्थ भाषा क्षेत्रसँ नै। कखनो काल मूल भाषाक कोनो भाषासँ सम्बन्धित तत्त्व वा गएर भाषिक तत्व (सांस्कृतिक तत्त्व) क सही-सही उदाहरण अनूदित भाषामे नै भेटैत अछि आ तखन अनुवादक गपकेँ नमराबऽ लगैत छथि वा ओइ लेल एकटा सन्निकट शब्दावली (ओइ नै भेटल तत्त्वक) देमए लगैत छथि। ऐ परिस्थितिमे सन्निकट शब्दावली देबासँ नीक गपकेँ नमरा कऽ बुझाएब वा परिशिष्ट दऽ ओकरा स्पष्ट करब हएत। ऐ सँ मूल भाषासँ मध्यस्थ माषाक माध्यमसँ कएल अनुवादमे होइबला साहित्यिक घाटाकेँ न्यून कएल जा सकत।
कथा, कविता, नाटक, उपन्यास, महाकाव्य (गीत-प्रबन्ध), निबन्ध, स्कूल-कॉलेजक पुस्तक, संगणक विज्ञान, समाजशास्त्र, समाज विज्ञान आ प्रकृति विज्ञानक पोथीक अनुवाद करबा काल किछु विशेष तकनीकक आवश्यकता पड़त। निबन्ध, स्कूल-कॉलेजक पुस्तक, संगणक विज्ञान, समाजशास्त्र, समाज विज्ञान आ प्रकृति विज्ञानक अनुवाद ऐ अर्थेँ सरल अछि जे ऐ सभमे विस्तारसँ विषयक चर्चा होइत अछि आ सर्जनात्मक साहित्य {कथा, कविता, नाटक, उपन्यास, महाकाव्य (गीत-प्रबन्ध)} क विपरीत भाव आ संस्कृतिक गुणांक नै रहैत अछि वा कम रहैत अछि। संगे एतए पाठक सेहो कक्षा/ विषयकक अनुसार सजाएल रहैत छथि। केमिकल नाम, बायोलोजिकल आ बोटेनिकल बाइनरी नाम आ आन सभ सिम्बल आदि जे विशिष्ट अन्तर्राष्ट्रीय संस्था सभ द्वारा स्वीकृत अछि तकर परिवर्तन वा अनुवाद अपेक्षित नै अछि। सर्जनात्मक साहित्यमे नाटक सभसँ कठिन अछि, फेर कविता अछि आ तखन कथा, जँ अनुवादकक दृष्टिकोणसँ देखी तखन। नाटकमे नाटकक पृष्ठभूमि आ परोक्ष निहितार्थकेँ चिन्हित करए पड़त संगहि पात्र सभक मनोविज्ञान बूझए पड़त। कवितामे कविताक विधासँ ओकर गढ़निसँ अनुवादकक परिचित भेनाइ आवश्यक, जेना हाइकूक मैथिलीसँ अंग्रेजी अनुवाद करै बेरमे मैथिलीक वार्णिक ५/७/५ क मेल जँ अंग्रेजीक अल्फाबेटसँ करेबै तँ अहाँक अनूदित हाइकू हास्यास्पद भऽ जाएत कारण अंग्रेजीमे ५/७/५ सिलेबलक हाइकू होइ छै आ मैथिलीमे जेना वर्ण आ सिलेबलक समानता होइ छै से अंग्रेजीमे नै होइ छै। ऐ सन्दर्भमे ज्योति सुनीत चौधरीक मैथिलीसँ अंग्रेजी अनुवाद एकटा प्रतिमान प्रस्तुत करैत अछि। कविताक लय, बिम्बपर विचार करए पड़त संगहि कविता खण्डक कविताक मुख्य शरीरसँ मिलान करए पड़त। कथामे कथाकारक आ कथाक पात्रक संग कथाक क्रम, बैकफ्लैशक समय-कालक ज्ञान आ वातावरणक ज्ञान आवश्यक भऽ जाइत अछि। आब महाकाव्यक अनुवाद देखू, रामलोचन शरणक मैथिली रामचरित मानस अव्धीसँ मैथिलीमे अनुवाद अछि मुदा दोहा, चौपाइ, सोरठा सभ शास्त्रीय रूपेँ अनूदित भेल अछि।
संस्कृत भाषाक अनुवादक माध्यमसँ पाठन आंग्ल शासक लोकनि द्वारा प्रारम्भ भेल। ऐ विधिसँ ने लैटिनक आ नहिये ग्रीकक अध्यापन कराओल गेल छल। ऐ विधिसँ जँ अहाँ संस्कत वा कोनो भाषा सीखब तँ आचार्य आ कोविद कऽ जाएब मुदा सम्भाषण नै कएल हएत। जँ कोनो भाषाकेँ अहाँ मातृभाषा रूपेँ सीखब तखने सम्भाषण कऽ सकब, संस्कृति आदिक परिचय पाठ्यक्रममे शब्दकोष; आ लोककथा आ इतिहास/ भूगोलक समावेश कऽ कएल जा सकैत अछि।
संगणक द्वारा अनुवाद: सर्जनात्मक वा निबन्ध, स्कूल-कॉलेजक पुस्तक, संगणक विज्ञान, समाजशास्त्र, समाज विज्ञान आ प्रकृति विज्ञानक अनुवाद संगणक द्वारा प्रायोगिक रूपमे कएल जाइत अछि मुदा कोल्ड ब्लडेड एनीमल क अनुवाद हास्यास्पद रूपेँ नृशंस जीव कएल जाइत अछि। मुदा संगणकक द्वारा अनुवाद किछु क्षेत्रमे सफल रूपेँ भेल अछि, जेना विकीपीडियामे ५०० शब्दक एकटा बेसी प्रयुक्त शब्दावली आ २६०० शब्दक शब्दावलीक अनुवाद केलासँ, गूगलक ट्रान्सलेशन अओजार आदिमे आधारभूत शब्दक अनुवाद केलासँ आ आन गवेषक जेना मोजिला फायरफॉक्स आदिमे अंग्रेजीक सभ पारिभाषिक संगणकीय शब्दक अनुवाद केलासँ त्रुटिविहीन स्वतः मैथिली अनुवाद भऽ जाइत अछि।
रामलोचन शरणक मैथिली राम चरित मानस
 
महाकाव्य वा गीत प्रबन्ध: महाकाव्यक वर्णन जे ई कतेक सर्गमे हुअए, एकर नायक केहन प्रकृतिक हुअए आ ओ उच्च कुल उत्पन्न हुअए आदि आब बुद्धिविलास मात्र कहल जाएत। जेना गद्यमे कथा होइत अछि आ विस्तारक अनुसार लघुकथा, कथा आ उपन्यासमे विभक्त कएल जाइत अछि तइ सन्दर्भमे उपन्यास (वा बीच-बीचमे नाटककक) पद्य रूपान्तरण महाकाव्य कहल जाएत। जँ ऋगवैदिक परम्परामे जाइ तँ महाकाव्यकेँ गीत-प्रबन्ध कहल जएबाक चाही।
 
आचार्य रामलोचन शरणक गीत-प्रबन्ध मैथिली रामचरित मानस: मैथिली साहित्यकेँ पढ़निहारक समक्ष मैथिलीमे रामचरित किंवा रामायण श्री चंदा झा कृत मिथिला भाषा रामायण आ श्री लालदासक रमेश्वर चरित मिथिला रामायण - ऐ दू गोट ग्रंथक रूपमे प्राप्त होइत अछि। पाठ्यक्रमक अंतर्गत स्कूल, कॉलेज-विश्वविद्यालयक मैथिली विषयक पाठ हो किंवा सामान्य आलोचना ग्रंथ आकि पत्र-पत्रिकामे छिड़िआयल लेख सभ, ऐ तेसर रामायणक अस्तित्वो धरि नै स्वीकार कएल गेल अछि। एकर संग ईहो बुझि लिअ जे जनमानस समालोचनाशास्त्रक आधारपर राखल विचारकेँ तखने स्वीकार करैत अछि जखन ओ सत्यताक प्रतीक हो। आइयो मिथिलामे जे अखंड रामायण पाठ होइत अछि से बाल्मीकि रामायणक किंवा तुलसीक रामचरितमानसक। एकर कारणपर हम बहुत दिन धरि विचार करैत रहलहुँ। कैकटा चन्द्र रामायण आ लालदासकृत मिथिला रामायण, रामायण अखंड पाठ केनिहार लोकनिकेँ बँटबो कएलहुँ मुदा सबहक ईएह विचार छल, जे ई दुनू ग्रंथ मैथिली साहित्यक अमूल्य धरोहर अछि, मुदा अखंड पाठक सुर जे तुलसीक मानसमे अछि से दोसर भाषाक रहला उत्तरो संगीतमय अछि। शंकरदेव अपन मातृभाषा असमियाक बदला मैथिली भाषाक प्रयोग संगीतमय भाषा होयबाक द्वारे कएलन्हि तइ भाषामे संगीतमय रामायणक रचना जे अखण्ड पाठमे प्रयोग भऽ सकए, केर निर्माण संभव नै भऽ सकल अछि, से हमर मोन मानबाक हेतु तैयार नै छल, श्री रामलोचनशरण-कृत यथासम्भव पूर्णभावरक्षित समश्लोकी मैथिली श्रीरामचरितमानस एकर प्रमाण अछि। अपन समीक्षक लोकनि ऐ मोतीकेँ चिन्हबामे सफल किए नै भऽ सकलाह, एकर चर्चो तक मैथिलीक उपरोक्त दुनू रामायणक समक्ष किए नै कएल जाइत अछि। स्व.हरिमोहन झाक कोनो पोथी मैथिली अकादमी द्वारा हुनका जिबैत प्रकाशित नै भेल आ साहित्य अकादमी पुरस्कार सेहो हुनका मृत्योपरांत देल गेलन्हि। आचार्य रामलोचन शरण मैथिलीक सभसँ पैघ महाकाव्यक रचयिता छथि आ हमरा विचारे सभसँ संपूर्ण मैथिली रामायणक सेहो। जखन हम ऐ महाकाव्यक फोटोकॉपी पूर्वाँचल मिथिलाक रामायण- अखंड- पाठक संस्थाकेँ देलहुँ, तँ ओ लोकनि एकरा देख कऽ आश्चर्यचकित रहि गेलाह आ अगिला साल ऐ रामायणक अखंड पाठक निर्णय कएलन्हि। एकरा मैथिलीक समालोचनाशास्त्रक विफलता मानल जाए, किएक तँ ई महाकाव्य तँ विफल भैये नै सकैत अछि। आचार्यक मनोहरपोथीक चर्चा हम अपन बाल्येवस्थासँ सुनैत रही, मुदा ऐ पोथीक नै। मैथिलीक सभसँ पैघ महाकाव्यक चर्चा मात्र सीतायनपर आबि किए खतम भऽ जाइत अछि। आचार्य श्री रामलोचनशरणक मैथिली श्री रामचरितमानस सभसँ पैघ महाकाव्य अछि ई एकटा तथ्य अछि आ से समालोचनाकार किंवा मैथिली भाषाक इतिहासकार लोकनिक कृपाक वशीभूत नै अछि। अपन ग्रंथक किञ्चित् पूर्ववृत्तम् मे आचार्य लिखैत छथि- मिथिलाभाषायाः मूर्द्धन्या लेखकाः श्रीहरिमोहनझामहोदया निशम्यैतद् वृत्तं परमाह्लादं गता भूयो भूयश्च मामुत्साहितवन्तः। आँगाँ ओ लिखैत छथि-प्राध्यापकस्य श्री सुरेन्द्रझा सुमन तथा सम्पादनविभागस्थ पण्डित श्री शिवशंकरझा-महोदयस्य हृदयेनाहं कृतज़्ज्ञोऽस्मि। से सभकेँ ई देखल गुनल सेहो छलन्हि।

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